هذا كتاب حسن | تحار فيه الفطن | |
أنفقت فيه مده | عشر سنين عده | |
منذ سمعت باسمكا | وضعته برسمكا | |
بيوته ألفان | جميعها معان | |
لو ظل كل شاعر | وناظم وناثر | |
كعمر نوح التالد | في نظم بيت واحد | |
من مثله لما قدر | ما كل من قال شعر | |
أنفذته مع ولدي | بل مهجتي وكبدي | |
وأنت عند ظني | أهل لكل من | |
وقد طوى اليكا | توكلاً عليكا | |
مشقة شديدة | وشقة بعيدة | |
ولو تركت جيت | سعياً وما ونيت | |
إن الفخار والعلا | إرثك من دون الملا |