أم على أشبالها اربع | جائت لبشر وبه تستعين | |
وتحمل الطفل لى كتفها | تستهدي فيه خبر القادمين | |
ملهوفة مما بها من اسيً | ترى بذاك الجمع شيئا دفين | |
فقال ياأم ارجعي للخبا | وابكي بنيك قتلوا أجمعين | |
فما انثنت وما بكت أمهم | وخاب منه ظنه باليقن | |
كأنها الطود وما زلزلت | وحق أن تجري لهم دمع عين | |
فقال يا أم البنين اعلمي | بأن عباسا قتيلا طعين | |
قالطعنت القلب مني فقل | النفس والدنيا وكل البنين | |
نمضي جميعا كلنا للفنا | نكون قربانا فدا للحسين |