| رحلوا وما رحلوا أهيل ودادي |
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إلا بحسن تصبري وفؤادي |
| ساروا ولكن خلفوني بعدهم |
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حزنا أصوب الدمع صوب عهادي |
| وسرت بقلبي المستهام ركابهم |
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تعلوا به جبلاً وتهبط وادِ |
| وخلت منازلهم فها هي بعدهم |
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قفرى وما فيها سوى الأوتادِ |
| ولقد وقفت بها وقوف موله |
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وبمهجتي للوجد قدح زنادِ |
| أبكي بها طوراً لفرط صبابتي |
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وأصيح فيها تارة وأنادي |
| يا دار أين مضى دووك أمالهم |
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بعد الترحل عند يوم معادِ |
| يا دار قد ذكرتني بعراصك الـ |
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ــقفرى عراص بني النبي الهادي |
| لما سرى عنها ابن بنت محمد |
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بالأهل والأصحاب والأولادِ |
| بقيت عليلته تنوح بعولة |
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وتقول ذاب من الفراق فؤادي |
| سار احسين وامسه الحرم مغبر |
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يويلي والمدينه صفت تصفر |
| طلعوا آل هاشم عن وطنهم |
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او ظل خالي حرم جدهم بعدهم |
| ساروا ليلهم وابعد ظعنهم |
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اولن صوت العليله ابگلب محتر |
| دريضوا هنا يهلنا للعليله |
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يهلنه افراگكم ما ليش حيله |
| يهلنه بعدكم ما نام ليله |
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او عيني من بعدكم دوم تسهر |