| أقول لعاذلتي مرة | وكانت على ودنا قائمه | |
| اذا أنتِ لم تبصري ما أرى | فبيني وأنت لنا صارمه | |
| ألستِ ترين بني هاشم | قد افنتهمو الفئة الظالمه | |
| فانت تزينتهم بالهدى | وبالطف هام بني فاطمه | |
| فلو كانت راسخة في الكتا | بالاحزاب خابرة عالمه | |
| علمتِ بأنهم معشر | لهم سبقت لعنة جاثمه | |
| سأجعل نفسي له جُنَّة | فلا تكثري لي من اللائمه | |
| أرجي بذلك حوض الرسو | ل والفوز والنعمة الدائمه | |
| لتهلك ان هلكت برة | وتخلص ان خلصت غانمه | 
